खुले बोरवेल: बच्चों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल देश में खुले बोरवेल से जुड़ी घटनाएं लगातार बच्चों की जिंदगी छीन रही हैं। हर बार ऐसी घटनाएं न क...
खुले बोरवेल: बच्चों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल
देश में खुले बोरवेल से जुड़ी घटनाएं लगातार बच्चों की जिंदगी छीन रही हैं। हर बार ऐसी घटनाएं न केवल पीड़ित परिवार बल्कि पूरे समाज को झकझोर देती हैं। राजस्थान के दौसा जिले में हुई हालिया घटना इसका एक और दुखद उदाहरण है। पांच साल के मासूम आर्यन की जान एक खुले बोरवेल के कारण चली गई। 9 दिसंबर को आर्यन खेलते-खेलते बोरवेल में गिर गया था। तीन दिन तक चले बचाव अभियान के बाद भी उसे जीवित नहीं बचाया जा सका। यह घटना न केवल आर्यन के परिवार के लिए एक त्रासदी है, बल्कि यह समाज के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा करती है: आखिर कब तक हमारे देश में ऐसे हादसे होते रहेंगे?
घटना का विवरण
आर्यन दौसा जिले के कालीखाड़ गांव का रहने वाला था। 9 दिसंबर की दोपहर वह अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था। खेलते-खेलते वह अचानक एक खुले बोरवेल में गिर गया। बोरवेल करीब 200 फीट गहरा था, जिसमें आर्यन 100 फीट की गहराई पर फंसा हुआ था। जैसे ही यह खबर गांव में फैली, चारों ओर अफरा-तफरी मच गई। आर्यन के परिवार वालों ने तुरंत प्रशासन को सूचना दी। बचाव अभियान तुरंत शुरू किया गया, लेकिन यह आसान नहीं था। रेस्क्यू ऑपरेशन में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, पुलिस और स्थानीय प्रशासन की टीमें जुटी रहीं। तीन दिनों तक चले इस ऑपरेशन में तमाम कोशिशें की गईं। बोरवेल के पास समानांतर गड्ढा खोदा गया और कैमरों की मदद से आर्यन की स्थिति की निगरानी की जाती रही। टीम ने ऑक्सीजन पाइप के जरिए आर्यन तक ऑक्सीजन पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन ये प्रयास असफल रहे। जब आर्यन को बाहर निकाला गया, तब तक उसकी मौत हो चुकी थी।
माता-पिता का दर्द और गांव में मातम
आर्यन की मौत ने उसके माता-पिता को गहरे सदमे में डाल दिया है। उनका रो-रो कर बुरा हाल है। गांव के हर व्यक्ति की आंखें नम हैं। कालीखाड़ गांव में इस घटना से शोक की लहर दौड़ गई है। आर्यन के माता-पिता ने प्रशासन और समाज से सवाल किया है कि आखिर बोरवेल जैसे खतरे को लेकर अब तक ठोस कदम क्यों नहीं उठाए गए हैं।
खुले बोरवेल: एक पुरानी समस्या
खुले बोरवेल में बच्चों के गिरने की घटनाएं भारत में नई नहीं हैं। पिछले कुछ दशकों में ऐसी अनगिनत घटनाएं सामने आई हैं। अधिकांश घटनाओं में बच्चों को बचाने के प्रयास किए जाते हैं, लेकिन कई बार ये असफल हो जाते हैं। यह समस्या गांवों और छोटे कस्बों में अधिक देखने को मिलती है, जहां बोरवेल खोदने के बाद उन्हें ठीक से बंद नहीं किया जाता। खुले बोरवेल की समस्या का मुख्य कारण है लोगों की लापरवाही और प्रशासन की उदासीनता। बोरवेल खोदने के बाद उन्हें बंद करना एक कानूनी अनिवार्यता है, लेकिन इसे लागू करने में अक्सर ढिलाई बरती जाती है। ग्रामीण इलाकों में यह आम बात है कि बोरवेल खोदने के बाद उपयोग में न आने पर उसे खुला छोड़ दिया जाता है।
भारत में बोरवेल से जुड़ी प्रमुख घटनाएं
प्रिंस (हरियाणा, 2006): प्रिंस नाम का पांच साल का बच्चा हरियाणा के कुरुक्षेत्र में एक खुले बोरवेल में गिर गया था। उसे 48 घंटे बाद सुरक्षित बाहर निकाला गया था
माही (गुजरात, 2012): चार साल की माही गुजरात के एक खुले बोरवेल में गिर गई थी। उसे 85 घंटे के ऑपरेशन के बाद बाहर निकाला गया, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी।
फतेहवीर (पंजाब, 2019): पंजाब में दो साल का फतेहवीर खुले बोरवेल में गिरा और छह दिनों तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका।
खुले बोरवेल के खतरों को कैसे रोका जाए?
खुले बोरवेल की समस्या को रोकने के लिए प्रशासन और जनता दोनों को मिलकर काम करना होगा। कुछ महत्वपूर्ण कदम जो इस समस्या को हल कर सकते हैं:
कड़े कानून और सख्त कार्रवाई:
बोरवेल खोदने वालों के लिए सख्त नियम लागू किए जाने चाहिए। अगर बोरवेल का उपयोग नहीं हो रहा है तो उसे तुरंत बंद करना अनिवार्य होना चाहिए। कानून का उल्लंघन करने वालों पर भारी जुर्माना और कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
जागरूकता अभियान:
ग्रामीण इलाकों में लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाए जाने चाहिए। लोगों को यह समझाना जरूरी है कि खुले बोरवेल न केवल उनके बच्चों के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए खतरनाक हैं।
तकनीकी समाधान:
खुले बोरवेल की निगरानी के लिए ड्रोन और सेंसर जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है। इससे प्रशासन को पता चल सकेगा कि कहां-कहां बोरवेल खुले हैं।
रेस्क्यू टीमों की ट्रेनिंग:
ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए बचाव टीमों को अत्याधुनिक उपकरण और ट्रेनिंग दी जानी चाहिए। समय पर और प्रभावी कार्रवाई से कई जानें बचाई जा सकती हैं
जनभागीदारी:
समाज को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। अगर कोई खुले बोरवेल की जानकारी हो तो तुरंत प्रशासन को सूचित करें।
मीडिया और समाज की भूमिका
मीडिया को भी इस समस्या पर ध्यान देना चाहिए। हर बार ऐसी घटनाओं के बाद कुछ दिनों तक चर्चा होती है, लेकिन फिर यह मुद्दा भूल जाता है। मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह इस समस्या को लगातार उठाए और प्रशासन पर दबाव बनाए।
सरकार की भूमिका
सरकार को इस समस्या को प्राथमिकता देनी चाहिए। गांवों और कस्बों में बोरवेल के निर्माण और बंद करने की निगरानी के लिए विशेष टीमें गठित की जानी चाहिए। साथ ही, ऐसी घटनाओं के पीड़ित परिवारों को मुआवजा और मदद भी प्रदान करनी चाहिए। आर्यन की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह घटना न केवल एक बच्चे की जिंदगी की कीमत बताती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि हमारे समाज और प्रशासन में अभी कितनी खामियां हैं। ऐसे हादसों को रोकने के लिए हमें मिलकर काम करना होगा। आर्यन के माता-पिता के दर्द को समझते हुए, यह सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है कि भविष्य में कोई और मासूम इस तरह के हादसे का शिकार न हो। अब समय है कि हम जागरूक हों और इस गंभीर समस्या का स्थायी समाधान निकालें।
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