सहारनपुर । राजनीति और नौकरशाही के बीच रिश्तों में एक बार फिर तल्खी देखने को मिली है। इस बार मामला सहारनपुर जिले का है, जहां छुटमलपुर नगर ...
सहारनपुर । राजनीति और नौकरशाही के बीच रिश्तों में एक बार फिर तल्खी देखने को मिली है। इस बार मामला सहारनपुर जिले का है, जहां छुटमलपुर नगर पंचायत की समस्याओं को लेकर कैराना सांसद इकरा हसन जब सहारनपुर के अपर जिलाधिकारी (एडीएम) संतोष बहादुर से मिलने पहुंचीं, तो बैठक का स्वरूप विवाद में तब्दील हो गया। सांसद ने आरोप लगाया कि एडीएम ने न केवल उनका अपमान किया, बल्कि नगर पंचायत चेयरपर्सन शमा परवीन को डांटा और दोनों को कार्यालय से चले जाने के लिए कह दिया। इस पूरे घटनाक्रम ने सूबे की नौकरशाही और जनप्रतिनिधियों के संबंधों पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगा दिए हैं। यह घटना 1 जुलाई की है। बताया गया है कि कैराना सांसद इकरा हसन, नगर पंचायत छुटमलपुर की चेयरपर्सन शमा परवीन के साथ जिले की प्रशासनिक समस्याओं को लेकर सहारनपुर के एडीएम (प्रशासन) संतोष बहादुर से मिलने पहुंची थीं। छुटमलपुर में सफाई, जल आपूर्ति, सड़कों की स्थिति और नगर विकास से जुड़ी कई शिकायतें थीं जिन्हें लेकर प्रतिनिधिमंडल एडीएम से संवाद के लिए गया था। जब सांसद कार्यालय पहुंचीं, तो बताया गया कि एडीएम लंच पर हैं। उन्हें इंतजार करने के लिए कहा गया। कुछ देर बाद जब एडीएम वापस लौटे, तो सांसद और चेयरपर्सन को उनके कक्ष में भेजा गया। इकरा हसन ने अपनी शिकायत में लिखा है कि जैसे ही उन्होंने समस्याएं बतानी शुरू कीं, एडीएम संतोष बहादुर का व्यवहार रूखा और अपमानजनक हो गया। उन्होंने सांसद को अनसुना करते हुए चेयरपर्सन शमा परवीन को डांटना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं, सांसद के अनुसार, एडीएम ने दोनों से कहा कि वे कक्ष से बाहर निकल जाएं और जो कहना हो, वह पत्र के माध्यम से बताएं।सांसद ने इस व्यवहार को न केवल अभद्र बल्कि संवैधानिक मर्यादाओं के खिलाफ बताया। उन्होंने प्रमुख सचिव (नियुक्ति), मंडलायुक्त सहारनपुर अटल कुमार राय और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को इस घटना की लिखित शिकायत भेजी है। मामले की गंभीरता को देखते हुए कमिश्नर अटल कुमार राय ने तत्काल सहारनपुर के जिलाधिकारी मनीष बंसल को जांच के आदेश दिए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी जनप्रतिनिधि के साथ इस प्रकार का व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। डीएम को विस्तृत जांच कर रिपोर्ट शासन को सौंपने को कहा गया है। डीएम मनीष बंसल ने जांच शुरू कर दी है और अपने मातहत अधिकारियों को निर्देशित किया है कि सभी जनप्रतिनिधियों के साथ सम्मानजनक व शालीन व्यवहार सुनिश्चित किया जाए। इस विवाद ने राजनीतिक हलकों में भी हलचल पैदा कर दी है। विपक्षी दलों ने इस प्रकरण को लेकर राज्य सरकार पर निशाना साधा है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने इस घटना को नौकरशाही की बढ़ती निरंकुशता का उदाहरण बताया है। वहीं, भाजपा के कुछ नेताओं ने इस पूरे मामले को एक "सामान्य प्रशासनिक संवाद" बताते हुए तूल न देने की सलाह दी है। पूर्व मंत्री और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता नरेश उत्तम ने कहा, "यह घटना दिखाती है कि कैसे जनप्रतिनिधियों की बातों को नजरअंदाज कर अफसरशाही तानाशाही की ओर बढ़ रही है। एक सांसद का अपमान, जनता का अपमान है।" वहीं कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने कहा, "अधिकारी भूल जाते हैं कि वे जनता के सेवक हैं, शासक नहीं। जब एक सांसद की बात नहीं सुनी जाती, तो आम जनता के साथ कैसा व्यवहार होता होगा, यह सोचने की बात है।" सहारनपुर प्रशासन की ओर से अभी तक कोई विस्तृत बयान नहीं आया है। हालांकि सूत्रों की मानें तो एडीएम संतोष बहादुर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को मौखिक रूप से बताया है कि उन्होंने कोई अमर्यादित व्यवहार नहीं किया और पूरा संवाद प्रक्रिया के तहत हुआ। उनका यह भी कहना है कि सांसद और चेयरपर्सन को पत्राचार के माध्यम से समस्या रखने को कहा गया क्योंकि कार्यालयीन व्यवस्था ऐसी ही है। भारतीय संविधान के अनुसार सांसद देश की जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके द्वारा उठाई गई जन समस्याओं को गंभीरता से लेना प्रत्येक प्रशासनिक अधिकारी का दायित्व है। सांसदों को संसद के भीतर और बाहर विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, जिनमें सम्मानपूर्वक व्यवहार एक अनिवार्य शर्त है। इस मामले में यदि एडीएम द्वारा की गई टिप्पणी और व्यवहार वास्तव में अपमानजनक था, तो यह संसद सदस्य के विशेषाधिकारों का उल्लंघन माना जा सकता है। इस मामले में एक और चिंता का विषय है – महिला जनप्रतिनिधियों के साथ व्यवहार। कैराना सांसद इकरा हसन और नगर पंचायत अध्यक्ष शमा परवीन दोनों महिलाएं हैं। सवाल उठता है कि क्या अफसरशाही महिलाओं के साथ समान व्यवहार करती है, या फिर लिंग के आधार पर भी भेदभाव किया जाता है? राष्ट्रीय महिला आयोग और राज्य महिला आयोग से भी इस घटना पर प्रतिक्रिया की उम्मीद की जा रही है। महिला संगठनों ने भी इस घटना को गंभीरता से लिया है और प्रशासन से स्पष्टीकरण की मांग की है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि जिलाधिकारी मनीष बंसल की जांच रिपोर्ट क्या निष्कर्ष निकालती है। यदि रिपोर्ट में एडीएम की गलती सामने आती है, तो उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई संभव है। वहीं यदि रिपोर्ट सांसद के दावों को पुष्ट नहीं करती, तो यह विवाद और गहराने की आशंका है।सांसद ने संकेत दिए हैं कि यदि न्याय नहीं मिला, तो वे मुख्यमंत्री से मिलकर इस पूरे प्रकरण की शिकायत करेंगी और जरूरत पड़ी तो विधानमंडल में यह मामला उठाया जाएगा। यह मामला केवल एक सांसद और एडीएम के बीच का विवाद नहीं है, बल्कि लोकतंत्र की बुनियादी समझ और प्रशासनिक व्यवस्था के तालमेल की भी परीक्षा है। क्या जनप्रतिनिधियों को वे सम्मान और अधिकार मिल पा रहे हैं, जिनकी अपेक्षा संविधान करता है? क्या नौकरशाही जन आकांक्षाओं के प्रति संवेदनशील है? जब तक ऐसे प्रश्न अनुत्तरित रहेंगे, लोकतंत्र की नींव पर संकट के बादल मंडराते रहेंगे। यह आवश्यक है कि ऐसे मामलों की निष्पक्ष जांच हो, दोषियों पर कार्रवाई हो और जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के बीच संवाद और सहयोग की नई संस्कृति विकसित की जाए।
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