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‘एक देश, एक चुनाव’: लोकतंत्र के ख़िलाफ़ एक षड्यंत्र- अखिलेश यादव।

 ‘ एक देश, एक चुनाव’: लोकतंत्र के ख़िलाफ़ एक षड्यंत्र अखिलेश यादव भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहां बहुदलीय व्यवस्था और विविधता इसकी...


 ‘एक देश, एक चुनाव’: लोकतंत्र के ख़िलाफ़ एक षड्यंत्र अखिलेश यादव

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहां बहुदलीय व्यवस्था और विविधता इसकी पहचान हैं। इस लोकतांत्रिक ढांचे की ताकत विभिन्न स्तरों पर जनता के प्रतिनिधित्व से आती है। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा बार-बार उठाए जा रहे ‘एक देश, एक चुनाव’ के मुद्दे ने एक नई बहस को जन्म दिया है। यह विचार न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र और संविधान की आत्मा के ख़िलाफ़ भी है। इस नीति को लागू करना न केवल जनमत के प्रति अपमानजनक होगा, बल्कि यह एकतंत्री प्रवृत्ति को बढ़ावा देने का भी प्रयास है।


लोकतंत्र की आत्मा पर हमला


‘एक देश, एक चुनाव’ का विचार सुनने में जितना सरल और आकर्षक लगता है, वास्तव में उतना ही खतरनाक है। लोकतंत्र का अर्थ केवल चुनाव करवाना नहीं है, बल्कि जनता को उसकी समस्याओं और मुद्दों पर समय-समय पर अपनी आवाज़ उठाने का अवसर देना है। अगर ‘एक देश, एक चुनाव’ प्रणाली को लागू किया जाता है, तो इसका मतलब यह होगा कि हर बार लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे। इसका प्रभाव यह होगा कि किसी भी क्षेत्रीय सरकार को बीच कार्यकाल में भंग करने की स्थिति में वहां उपचुनाव कराना संभव नहीं होगा। ऐसी स्थिति में अगर किसी राज्य सरकार को अस्थिरता के कारण हटाया जाता है, तो जनता को बिना किसी प्रतिनिधित्व के रहना पड़ेगा। क्या यह जनता के अधिकारों का हनन नहीं है?


सांविधानिक संकट की स्थिति


संविधान ने भारत को एक संघीय ढांचा प्रदान किया है, जिसमें केंद्र और राज्य अपनी-अपनी भूमिकाओं और अधिकारों का पालन करते हैं। इस प्रणाली में किसी राज्य सरकार के पास यह अधिकार है कि वह अपनी नीतियों और प्रशासनिक ढांचे के आधार पर निर्णय ले। यदि ‘एक देश, एक चुनाव’ लागू होता है, तो यह संघीय ढांचे को कमजोर करेगा। मान लीजिए, किसी राज्य की सरकार चुनाव के बीच में गिर जाती है। उस स्थिति में क्या वहां चुनाव नहीं होगा? क्या जनता को अगले पांच वर्षों तक बिना प्रतिनिधित्व के रहना पड़ेगा? अगर राज्य सरकार को समय से पहले भंग कर दिया जाए, तो वहां लोकशाही का स्थान एक निर्वाचित अधिनायकवाद ले लेगा।


क्षेत्रीय दलों का दमन


भारत की विविधता ही इसकी ताकत है, और क्षेत्रीय दल इस विविधता को मजबूत करने का काम करते हैं। ‘एक देश, एक चुनाव’ का उद्देश्य बड़े राष्ट्रीय दलों को फायदा पहुंचाना और क्षेत्रीय दलों की आवाज़ को दबाना है। राष्ट्रीय मुद्दों और क्षेत्रीय मुद्दों का स्वरूप अलग होता है। किसान, पानी, बाढ़, सूखा, बेरोज़गारी और शिक्षा जैसे मुद्दे क्षेत्रीय होते हैं, जबकि सुरक्षा, विदेश नीति और आर्थिक नीतियां राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनती हैं। यदि सभी चुनाव एक साथ होंगे, तो यह क्षेत्रीय मुद्दों को दबा देगा। क्षेत्रीय दलों का जनाधार कमजोर होगा और जनता के स्थानीय मुद्दे हाशिए पर चले जाएंगे।


लोकतंत्र का दिखावा बन जाएगा चुनाव


चुनाव लोकतंत्र की आधारशिला है, लेकिन जब इसे केवल एक औपचारिक प्रक्रिया बना दिया जाएगा, तो इसका सार समाप्त हो जाएगा। ‘एक देश, एक चुनाव’ में राष्ट्रीय मुद्दे क्षेत्रीय मुद्दों पर हावी हो जाएंगे। बड़ी राजनीतिक पार्टियां भारी प्रचार और धनबल के सहारे चुनाव में दबदबा बना लेंगी। इससे छोटे और क्षेत्रीय दल चुनावी दौड़ से बाहर हो जाएंगे। सरकार जो बारिश, पानी, त्योहार, और नहान के नाम पर चुनाव स्थगित करने के लिए जानी जाती है, वह एक साथ चुनाव कराने का दावा कैसे कर सकती है? क्या यह जनता को भ्रमित करने का प्रयास नहीं है? यह सरकार की नीति में स्पष्ट विरोधाभास है।


अव्यावहारिक और अलोकतांत्रिक व्यवस्था


‘एक देश, एक चुनाव’ की सबसे बड़ी समस्या इसकी अव्यावहारिकता है। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, जहां हर राज्य की अपनी समस्याएं और मुद्दे हैं, वहां इस तरह की प्रणाली लागू करना असंभव है। इसके अलावा, इस प्रणाली को लागू करने के लिए मौजूदा संवैधानिक प्रावधानों में बड़े बदलाव की आवश्यकता होगी। इससे न केवल संवैधानिक संकट उत्पन्न होगा, बल्कि यह न्यायपालिका और विधायिका के बीच टकराव का कारण भी बनेगा।


एकतंत्री सोच का षड्यंत्र


‘एक देश, एक चुनाव’ केवल एक नारा नहीं है, बल्कि यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। इसका उद्देश्य सत्ता के केंद्रीकरण और विपक्ष की आवाज़ को कमजोर करना है। जो सरकार चुनावों को महज एक औपचारिकता बना देना चाहती है, वह जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन कर रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ का विचार लोकतंत्र को कमजोर करने और देश को एकतंत्री शासन की ओर ले जाने का प्रयास है। यह नीति उन शक्तियों को मजबूत करेगी, जो पूरे देश पर एक साथ कब्जा करना चाहती हैं।


चुनावी प्रक्रिया का सामूहिक अपहरण


‘एक देश, एक चुनाव’ भारतीय लोकतंत्र की बहुलतावादी परंपरा के विपरीत है। यह चुनावी प्रक्रिया का सामूहिक अपहरण है, जिसमें जनता की आवाज़ और क्षेत्रीय मुद्दों को दबा दिया जाएगा। यह नीति भारतीय लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध होगी। ‘एक देश, एक चुनाव’ केवल एक राजनीतिक नारा नहीं है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की आत्मा पर हमला है। यह नीति न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि यह जनता के अधिकारों, क्षेत्रीय दलों की आवाज़ और संविधान की आत्मा के खिलाफ भी है। इसलिए, जनता को जागरूक होना चाहिए और इस अलोकतांत्रिक विचारधारा का पुरज़ोर विरोध करना चाहिए। लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है, और उसकी स्वतंत्रता और अधिकारों का सम्मान किया जाना चाहिए। ‘एक देश, एक चुनाव’ के पीछे छिपी साजिश को समझना और इसे नकारना ही सच्चे लोकतंत्र की जीत होगी।


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