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मंगलुरुः वक्फ संशोधन एक्ट के खिलाफ हुआ विशाल विरोध प्रदर्शन, लाखों की तादाद में पहुंचे मुसलमान

  संपादक - शादान शाह   मंगलुरु, कर्नाटक  , कर्नाटक के तटीय शहर मंगलुरु ने हाल ही में एक ऐतिहासिक और अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन का गवाह बना, जब...

 

संपादक - शादान शाह 

मंगलुरु, कर्नाटक , कर्नाटक के तटीय शहर मंगलुरु ने हाल ही में एक ऐतिहासिक और अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन का गवाह बना, जब वक्फ संशोधन एक्ट के खिलाफ लाखों मुसलमान सड़कों पर उतर आए। यह प्रदर्शन न केवल संख्या के लिहाज़ से ऐतिहासिक रहा, बल्कि इसने देश में अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर एक नई बहस भी छेड़ दी है। वक्फ बोर्ड भारत में मुस्लिम धर्मस्थलों और धार्मिक-सामाजिक संस्थानों की संपत्तियों का प्रबंधन करता है। सरकार द्वारा प्रस्तावित वक्फ संशोधन एक्ट 2024 के अंतर्गत कुछ ऐसे प्रावधान जोड़े गए हैं, जिनसे वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ेगा, और कुछ संपत्तियों को ‘पब्लिक यूज़’ के लिए अधिग्रहित किया जा सकेगा। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि इस एक्ट के ज़रिए सरकार वक्फ संपत्तियों को अपने अधीन करने की कोशिश कर रही है, जिससे मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों और यतीमखानों की सुरक्षा पर खतरा मंडराने लगा है।

प्रदर्शन की शुरुआत मंगलुरु के प्रसिद्ध जमीयत-उल-उलेमा, SDPI, और अन्य स्थानीय मुस्लिम संगठनों द्वारा एकजुट होकर की गई थी। आयोजकों ने बताया कि यह सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि मुस्लिम समुदाय की अस्मिता और अधिकारों की लड़ाई है।

यह विशाल विरोध प्रदर्शन मंगलुरु के नेहरू मैदान, लाइट हाउस हिल रोड, और सेंट्रल रेलवे स्टेशन तक फैला रहा। स्थानीय पुलिस के अनुसार प्रदर्शन में लगभग 5 लाख लोग शामिल हुए। आयोजकों का दावा है कि यह संख्या 10 लाख तक पहुंच गई थी, जिसमें कर्नाटक के अलावा केरल, महाराष्ट्र, और तमिलनाडु से भी प्रतिभागी आए थे।

प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा, हालांकि भारी पुलिस बल तैनात रहा था। पूरे शहर में धारा 144 लागू की गई थी, लेकिन फिर भी भीड़ अनुशासित रही। प्रदर्शनकारियों ने हाथों में प्लेकार्ड्स लिए हुए थे, जिन पर लिखा था – वक्फ हमारी धरोहर है, हमारी मस्जिदें हमारी हैं, धार्मिक आज़ादी पर हमला बर्दाश्त नहीं।

प्रदर्शन के दौरान मंच से कई उलेमाओं, समाजसेवियों और राजनीतिक नेताओं ने भाषण दिए, जिनमें सरकार से संशोधन एक्ट को वापस लेने की मांग की गई। मौलाना शफी सईद, जो कि कर्नाटक मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य हैं, ने कहा कि यह एक्ट मुसलमानों के धार्मिक और सामाजिक अस्तित्व पर सीधा हमला है। सरकार को समझना चाहिए कि वक्फ संपत्तियाँ किसी की दया से नहीं, बल्कि हमारी मेहनत और विरासत से जुड़ी हैं।

SDPI के राष्ट्रीय अध्यक्ष, अब्दुल मजीद, ने कहा कि अगर सरकार ने यह एक्ट वापस नहीं लिया, तो यह सिर्फ मंगलुरु नहीं, बल्कि दिल्ली तक आंदोलन पहुंचेगा।

इस विरोध प्रदर्शन में बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं और युवाओं की भागीदारी रही। यह दर्शाता है कि यह केवल धार्मिक नेताओं का नहीं, बल्कि आम जनता का आंदोलन बन चुका है। फातिमा बेगम, जो कि मंगलुरु यूनिवर्सिटी की छात्रा हैं, ने कहा कि यह हमारी मस्जिदों की रक्षा का मामला है। हम चुप नहीं बैठेंगे। संविधान हमें अपने धर्म की रक्षा का अधिकार देता है।

प्रशासन ने प्रदर्शन को शांतिपूर्ण बताया, लेकिन साथ ही कुछ प्रदर्शनकारियों पर एफआईआर भी दर्ज की गई है, विशेष रूप से उन इलाकों में जहाँ ट्रैफिक और सुरक्षा व्यवस्था में बाधा आई। मंगलुरु के पुलिस कमिश्नर, के. ए. नायडू, ने कहा कि हमने कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पूरे इंतज़ाम किए थे। किसी भी प्रकार की हिंसा या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं होने दिया जाएगा। विपक्षी पार्टियों ने इस एक्ट को संविधान विरोधी बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की है। कांग्रेस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बयान जारी कर कहा कि वक्फ संपत्तियाँ मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सामाजिक संरचना की रीढ़ हैं। सरकार का इस पर नियंत्रण पाना तानाशाही है। वहीं भाजपा के प्रवक्ता ने कहा कि सरकार का उद्देश्य पारदर्शिता और विकास है, न कि किसी धर्म विशेष के अधिकारों में हस्तक्षेप। अफवाहों के आधार पर जनता को भड़काया जा रहा है।

इस विरोध की गूंज सोशल मीडिया पर भी सुनाई दी। ट्विटर पर #WaqfProtestMangalore, #SaveWaqfProperties, और #MinorityRightsUnderThreat जैसे हैशटैग ट्रेंड करते रहे। प्रसिद्ध पत्रकार और एक्टिविस्टों ने भी इस मुद्दे को उठाया और केंद्र सरकार से पुनर्विचार करने का आग्रह किया।

ओआईसी (Organisation of Islamic Cooperation) और कुछ मुस्लिम देशों के राजनयिकों ने भी इस घटनाक्रम पर नज़र रखते हुए बयान दिया कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने आगामी सत्र में वक्फ संशोधन एक्ट को रद्द नहीं किया, तो अगला प्रदर्शन बेंगलुरु विधानसभा भवन के सामने किया जाएगा। जमीयत-उल-उलेमा और अन्य संगठनों ने 3 हफ्तों का अल्टीमेटम देते हुए एक साझा मोर्चा भी बनाया है, जिसे ‘वक्फ रक्षा संघर्ष समिति’ नाम दिया गया है। भारत में वक्फ की व्यवस्था सदियों पुरानी है। वक्फ एक इस्लामिक संस्था है जिसमें कोई व्यक्ति अपनी चल या अचल संपत्ति धार्मिक या सामाजिक उद्देश्य के लिए स्थायी रूप से समर्पित करता है। इस संपत्ति को न तो बेचा जा सकता है, न खरीदा, न विरासत में दिया जा सकता है। भारत में वक्फ अधिनियम 1995 के तहत वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन राज्य वक्फ बोर्डों के अधीन होता है। वर्तमान में देश में लगभग 6 लाख वक्फ संपत्तियाँ दर्ज हैं, जिनकी अनुमानित मूल्य 1.2 लाख करोड़ रुपये से अधिक बताई जाती है। इतिहास गवाह है कि वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण, हेराफेरी और राजनैतिक हस्तक्षेप हमेशा से विवाद का कारण रहे हैं। कई मामलों में स्थानीय प्रशासनों ने वक्फ संपत्तियों का उपयोग व्यावसायिक या शहरीकरण उद्देश्यों के लिए करने की कोशिश की, जिससे समुदाय के भीतर नाराज़गी पनपी। हाल ही में संसद में पेश किए गए वक्फ संशोधन एक्ट 2024 में ऐसे प्रावधान लाए गए हैं जिनसे सरकारी हस्तक्षेप की संभावना बढ़ गई है। इनमें सरकारी अधिग्रहण की अनुमति, बोर्डों पर निगरानी बढ़ाना और लीज व्यवस्था में सरकार को अधिकार देना शामिल है। इससे मुस्लिम समुदाय के भीतर यह भय उत्पन्न हो गया है कि धार्मिक स्थलों और संस्थानों की स्वायत्तता खतरे में पड़ सकती है। कई वरिष्ठ वकीलों और संवैधानिक विशेषज्ञों ने वक्फ संशोधन एक्ट पर टिप्पणी की है। वरिष्ठ अधिवक्ता नाज़िया कुरैशी के अनुसार यह एक्ट संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन करता है, जो सभी धार्मिक समुदायों को अपने धार्मिक मामलों को स्वतंत्र रूप से संचालित करने का अधिकार देता है। अगर सरकार वक्फ बोर्ड की संपत्तियों में हस्तक्षेप करती है, तो यह धार्मिक स्वतंत्रता पर चोट होगी। पूर्व न्यायाधीश एच.एस. बेग ने कहा कि सरकार पारदर्शिता की बात कर रही है, परंतु यह पारदर्शिता एकतरफा नियंत्रण में बदल सकती है। अगर इस पर सही संतुलन न बनाया गया तो यह गंभीर संवैधानिक विवादों को जन्म दे सकता है। समुदाय की मुख्य चिंताओं में धार्मिक पहचान पर खतरा, शिक्षा और सेवा संस्थानों पर प्रभाव, और राजनीतिक हस्तक्षेप का भय प्रमुख हैं। मुस्लिम समुदाय का कहना है कि यह केवल ज़मीन की बात नहीं है, बल्कि पूरी धार्मिक और सामाजिक संरचना की बात है। इस विरोध की एक विशेष बात यह रही कि युवाओं और डिजिटल माध्यमों ने आंदोलन को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। छात्रों और युवा संगठनों ने सोशल मीडिया पर आंदोलन को व्यापक समर्थन दिलाया। वीडियो, रील्स और पोस्ट्स के ज़रिए इस मुद्दे को पूरे देश में फैलाया गया। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 से 30 तक अल्पसंख्यकों को धार्मिक स्वतंत्रता और अपनी संस्था संचालित करने का अधिकार देता है। विशेष रूप से अनुच्छेद 26 कहता है कि हर धार्मिक संप्रदाय को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार है। वक्फ संपत्तियाँ धार्मिक संस्थाओं के अंतर्गत आती हैं। इसलिए इन पर किसी भी तरह का नियंत्रण या हस्तक्षेप संविधान की भावना के खिलाफ माना जा सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह प्रदर्शन न केवल एक सामाजिक मुद्दा है, बल्कि इसका राजनीतिक असर भी गहरा हो सकता है। कर्नाटक, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जहाँ मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं, वहाँ इस मुद्दे पर राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं। कांग्रेस, AIMIM और SDPI जैसी पार्टियाँ पहले ही इस मुद्दे को राजनीतिक मंच पर ला चुकी हैं। सम्भावित समाधान के तौर पर संवैधानिक विशेषज्ञों की समिति का गठन, वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता सुनिश्चित करना, जन संवाद और रायशुमारी, और विकास तथा धार्मिक अधिकारों में संतुलन बनाए रखने की सिफारिश की गई है। मंगलुरु का वक्फ विरोध प्रदर्शन न केवल एक कानून के खिलाफ आंदोलन है, बल्कि यह एक सामाजिक चेतना, लोकतांत्रिक अधिकार और सांस्कृतिक अस्मिता का संग्राम बन चुका है। यह भारत के लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी भी है कि जब कोई क़ानून जनता की सहमति के बिना लागू किया जाता है, तो उसका विरोध स्वाभाविक है। वहीं यह सरकार के लिए एक अवसर भी है — संवाद की राह खोलने का, समुदायों का विश्वास जीतने का, और यह सिद्ध करने का कि भारत वाकई एक धर्मनिरपेक्ष, संवैधानिक गणराज्य है जहाँ हर नागरिक की आवाज़ की अहमियत है।

 

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