पाकिस्तान में जन्मे ईसाई व्यक्ति को 43 साल बाद मिली भारतीय नागरिकता गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक कदम उठाते ह...
पाकिस्तान में जन्मे ईसाई व्यक्ति को 43 साल बाद मिली भारतीय नागरिकता
गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए पाकिस्तान में जन्मे शेन सबेस्टियन परेरा को भारतीय नागरिकता का प्रमाण पत्र सौंपा। परेरा कराची में पैदा हुए थे और उनके जन्म के चार महीने बाद ही उनका परिवार गोवा के अपने पैतृक गांव में आकर बस गया था। हालांकि, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने में 43 साल का लंबा समय लगा। यह मामला भारत में नागरिकता से संबंधित प्रक्रियाओं, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA), और सरकार के प्रयासों को बेहतर तरीके से समझने का एक उदाहरण है।
शेन परेरा की कहानी
शेन सबेस्टियन परेरा का जन्म 1980 में पाकिस्तान के कराची में हुआ था। उनके माता-पिता गोवा के रहने वाले थे और बेहतर अवसरों की तलाश में पाकिस्तान चले गए थे। शेन के जन्म के चार महीने बाद ही उनका परिवार गोवा लौट आया। इसके बावजूद, परेरा और उनके परिवार को भारतीय नागरिकता के लिए संघर्ष करना पड़ा।
परेरा ने बताया कि उनके पास बचपन से ही भारतीय होने का अहसास था, क्योंकि उनकी परवरिश गोवा की संस्कृति, परंपराओं, और समाज के बीच हुई थी। लेकिन आधिकारिक तौर पर उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए लंबी कानूनी और प्रशासनिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ा।
परेरा के परिवार को शुरुआती वर्षों में गोवा में कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ा। उनके पास यह प्रमाणित करने के लिए दस्तावेज नहीं थे कि वे भारत के स्थायी निवासी हैं। इसके चलते, परेरा को कई सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़े और अलग-अलग स्तरों पर दस्तावेजों की पुष्टि करनी पड़ी।
नागरिकता प्राप्त करने में देरी के कारण
परेरा के मामले में नागरिकता प्राप्त करने में देरी का मुख्य कारण भारतीय नागरिकता से जुड़े कठोर नियम और प्रक्रियाएं थीं। भारतीय नागरिकता कानून के अनुसार, किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए कई प्रमाण पत्र और दस्तावेज प्रस्तुत करने होते हैं।
भारत में नागरिकता से संबंधित मामलों में सबसे बड़ी समस्या यह है कि कई मामलों में जन्म प्रमाणपत्र या अन्य आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध नहीं होते। परेरा के मामले में भी यही समस्या आई। उनके परिवार के पास कराची से लौटने के बाद से ऐसे प्रमाणपत्र नहीं थे, जो यह साबित कर सकें कि वे भारतीय हैं।
इसके अतिरिक्त, 2019 में पारित नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) ने गैर-मुस्लिम शरणार्थियों, विशेष रूप से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, और ईसाई धर्मावलंबियों के लिए नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया को आसान बना दिया। हालांकि, यह अधिनियम विवादों और आलोचनाओं का भी केंद्र रहा है।
CAA के तहत नागरिकता प्राप्ति
CAA के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है, बशर्ते वे 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए हों। परेरा का मामला इस अधिनियम के प्रभाव को रेखांकित करता है, जिसने उन्हें कानूनी रूप से भारतीय नागरिकता प्राप्त करने में मदद की।
हालांकि, CAA पर देशभर में बहस और विरोध प्रदर्शन हुए, क्योंकि कई समूहों ने इसे धार्मिक भेदभाव का उदाहरण बताया। लेकिन परेरा जैसे लोगों के लिए यह अधिनियम एक नई उम्मीद बनकर सामने आया।
मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत का बयान
प्रमाण पत्र सौंपते समय, गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा, "यह हमारे लिए गर्व का क्षण है कि हम शेन परेरा जैसे व्यक्तियों को उनकी सही पहचान दिला सके। गोवा ने हमेशा विविधता और समावेशिता को अपनाया है। CAA ने ऐसे मामलों में नागरिकता प्रक्रिया को सरल बनाया है।"
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि गोवा सरकार नागरिकता संबंधी मुद्दों को हल करने के लिए प्रतिबद्ध है और राज्य में ऐसे मामलों की प्रक्रिया को तेजी से पूरा करने के लिए प्रयासरत है।
43 साल की प्रतीक्षा का अंत
शेन परेरा ने भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के बाद इसे अपने जीवन का सबसे बड़ा दिन बताया। उन्होंने कहा, "मैंने हमेशा अपने आप को भारतीय महसूस किया, लेकिन अब यह कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त हो गई है। यह मेरे लिए बहुत खास है। मैं सरकार और उन सभी लोगों का धन्यवाद करता हूं, जिन्होंने इस प्रक्रिया को पूरा करने में मेरी मदद की।"
भारतीय नागरिकता कानून का इतिहास
भारतीय नागरिकता कानून 1955 में लागू किया गया था। इसके तहत जन्म, वंश, पंजीकरण, प्राकृतिककरण, और क्षेत्रीय समावेशन के माध्यम से नागरिकता प्राप्त करने का प्रावधान है।
हालांकि, भारत में शरणार्थियों और प्रवासियों की बढ़ती संख्या के कारण नागरिकता कानूनों में समय-समय पर बदलाव किए गए। 2019 का CAA ऐसा ही एक बदलाव था, जिसने विशेष रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल बनाया।
नागरिकता संबंधी मुद्दे और चुनौतियां
शेन परेरा का मामला केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं है; यह उन हजारों लोगों की समस्याओं को उजागर करता है, जो नागरिकता प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भारत में प्रवासियों और शरणार्थियों की स्थिति अक्सर राजनीतिक और कानूनी विवादों का विषय बनती है।
CAA का समर्थन करने वाले इसे धार्मिक अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करने का एक जरिया मानते हैं, जबकि इसके आलोचक इसे भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के खिलाफ मानते हैं।
नागरिकता प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव
परेरा का मामला यह भी दिखाता है कि भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और सुलभता की कमी है। कई बार नागरिकता संबंधी मामलों में लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ता है, जिससे उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इस समस्या का समाधान करने के लिए सरकार को नागरिकता प्रक्रिया को और अधिक सुलभ और तेज बनाना चाहिए। इसके साथ ही, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नागरिकता कानून किसी विशेष वर्ग या समुदाय के खिलाफ भेदभाव न करे।
गोवा की विविधता और समावेशिता
गोवा भारत का एक ऐसा राज्य है, जो अपनी सांस्कृतिक विविधता और समावेशी समाज के लिए जाना जाता है। परेरा जैसे मामलों में गोवा की भूमिका यह दर्शाती है कि यह राज्य न केवल सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है, बल्कि अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारियों को भी निभाने के लिए तैयार है।
गोवा की सरकार ने परेरा के मामले को गंभीरता से लिया और उनकी नागरिकता प्रक्रिया को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास किया। यह अन्य राज्यों के लिए एक उदाहरण बन सकता है कि वे भी अपने नागरिकों की समस्याओं को गंभीरता से लें और उन्हें जल्द से जल्द हल करें।
नागरिकता का महत्व
नागरिकता किसी भी व्यक्ति की पहचान और अधिकारों का आधार होती है। यह व्यक्ति को न केवल कानूनी रूप से देश का हिस्सा बनाती है, बल्कि उसे समाज में बराबरी का स्थान भी देती है। शेन परेरा जैसे लोगों के लिए, जो दशकों से इस पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं, नागरिकता प्राप्त करना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
CAA का व्यापक प्रभाव
हालांकि, CAA ने शेन परेरा जैसे व्यक्तियों को लाभ पहुंचाया है, लेकिन इसका व्यापक प्रभाव भारतीय समाज और राजनीति पर देखा गया है। एक ओर, यह कानून उन धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए फायदेमंद साबित हुआ है, जो लंबे समय से भारतीय नागरिकता के लिए संघर्ष कर रहे थे। दूसरी ओर, इस कानून ने भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे पर सवाल उठाए हैं।
आलोचकों का कहना है कि CAA ने भारत के नागरिकता कानूनों को धर्म के आधार पर विभाजित कर दिया है, जिससे यह संविधान के धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के खिलाफ है। वहीं, इसके समर्थक इसे मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एक सकारात्मक कदम मानते हैं।
शेन सबेस्टियन परेरा का 43 साल का संघर्ष और आखिरकार भारतीय नागरिकता प्राप्त करना इस बात का प्रमाण है कि सरकार द्वारा उठाए गए कदम, जैसे CAA, समाज के कुछ वर्गों के लिए लाभकारी हो सकते हैं। हालांकि, यह भी महत्वपूर्ण है कि नागरिकता से जुड़े मामलों में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखी जाए।
परेरा की कहानी केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है; यह भारत में नागरिकता से जुड़े जटिल मुद्दों, कानूनी प्रक्रियाओं, और सरकार की भूमिका पर विचार करने का एक अवसर भी प्रदान करती है।
इस घटना ने यह भी दिखाया कि एक व्यक्ति की सफलता सरकार और समाज के सहयोग से संभव होती है। शेन परेरा जैसे लोगों के लिए, यह नागरिकता एक नए जीवन की शुरुआत है। अब यह देखना होगा कि नागरिकता प्रक्रिया में आने वाली समस्याओं को हल करने के लिए सरकार किस प्रकार के कदम उठाती है।
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