राज्यसभा में जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव खारिज: उपसभापति ने खामियों पर उठाए सवाल राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ...
राज्यसभा में जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव खारिज: उपसभापति ने खामियों पर उठाए सवाल
अविश्वास प्रस्ताव: पृष्ठभूमि
विपक्षी दलों ने उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ पर संविधान की गरिमा बनाए रखने में विफल रहने और पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए यह प्रस्ताव पेश किया था। लेकिन नोटिस की समीक्षा के बाद, उपसभापति ने इसे खारिज कर दिया।
नोटिस में कमियां
राज्यसभा उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करते हुए कई गंभीर मुद्दे उठाए। उन्होंने कहा:
1. नाम और स्पेलिंग में गलतियां:
नोटिस में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का नाम ठीक से नहीं लिखा गया था। यहां तक कि उनके नाम की स्पेलिंग भी गलत थी। यह दर्शाता है कि प्रस्ताव तैयार करने में पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया।
2. साक्ष्य और प्रमाण की कमी:
नोटिस में लगाए गए आरोपों को प्रमाणित करने के लिए कोई भी दस्तावेज या साक्ष्य संलग्न नहीं थे। उपसभापति ने कहा कि केवल मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर गंभीर आरोप लगाना अनुचित है।
3. दस्तावेजों का अभाव:
प्रस्ताव में उपराष्ट्रपति के कार्यों के खिलाफ लगाए गए आरोपों से संबंधित कोई भी दस्तावेज शामिल नहीं था।
4. जल्दबाजी और लापरवाही:
उपसभापति ने कहा कि प्रस्ताव को जल्दबाजी में तैयार किया गया है। उन्होंने इसे "राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित और उपराष्ट्रपति की छवि धूमिल करने की कोशिश" बताया।
संसदीय परंपराओं पर सवाल
उपसभापति हरिवंश ने इस मामले में संवैधानिक और संसदीय परंपराओं का हवाला देते हुए कहा कि इस तरह के नोटिस के साथ गंभीरता से पेश आना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रस्ताव पेश करने वालों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे तथ्यात्मक और विधिक रूप से सटीक दस्तावेज प्रस्तुत करें।
विपक्ष का जवाब
अविश्वास प्रस्ताव खारिज होने के बाद, विपक्ष ने सरकार पर लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रक्रियाओं का दमन करने का आरोप लगाया। विपक्षी दलों का कहना है कि उनके नोटिस को तकनीकी खामियों के आधार पर खारिज करना उचित नहीं है। उन्होंने यह भी दावा किया कि उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पक्षपातपूर्ण रहा है और उन्होंने सदन में विपक्ष की आवाज को दबाने का प्रयास किया है।
जगदीप धनखड़ की प्रतिक्रिया
हालांकि, इस मामले पर जगदीप धनखड़ की ओर से सीधे कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, लेकिन उनके करीबी सूत्रों का कहना है कि यह प्रस्ताव राजनीतिक मंशा से प्रेरित था। धनखड़ ने हमेशा संवैधानिक दायरे में रहकर कार्य करने की बात कही है।
संवैधानिक और कानूनी पक्ष
संविधान के अनुच्छेद 67(b) के तहत, उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए स्पष्ट और विधिक आधार होना आवश्यक है। इस प्रक्रिया में:
प्रस्ताव में लगाए गए आरोपों के लिए ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करना होता है। प्रस्ताव के समर्थन में पर्याप्त संख्या में हस्ताक्षर होने चाहिए।
सभी दस्तावेज सही और पूर्ण रूप से पेश किए जाने चाहिए।
मीडिया और विशेषज्ञों की राय
इस मुद्दे पर राजनीतिक विशेषज्ञों और मीडिया ने भी अपनी राय दी।
संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला संसदीय प्रक्रियाओं की कमजोरी को उजागर करता है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, विपक्ष ने इस प्रस्ताव के जरिए राजनीतिक माहौल गरमाने का प्रयास किया।
क्या विपक्ष ने मौका गंवा दिया?
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विपक्ष ने इस प्रस्ताव के जरिए अपनी बात रखने का एक बड़ा मौका गंवा दिया। अगर प्रस्ताव सही तरीके से तैयार किया गया होता, तो यह सरकार और सभापति दोनों को जवाबदेह ठहराने का एक प्रभावी मंच बन सकता था।
भविष्य के लिए संकेत
इस घटनाक्रम के बाद, संसद में विपक्ष और सरकार के बीच टकराव और बढ़ने की संभावना है। विपक्ष ने संकेत दिया है कि वे इस मामले को अन्य प्लेटफार्मों पर उठाएंगे।
राज्यसभा में जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का खारिज होना केवल एक राजनीतिक घटना नहीं है, बल्कि यह संसदीय प्रक्रियाओं की गंभीरता को भी रेखांकित करता है। यह प्रकरण दर्शाता है कि किसी भी प्रस्ताव को लाने से पहले तथ्यों और दस्तावेजों की सटीकता पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है।
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