बुढ़ाना ,.. कस्बे में आवारा असंख्य बंदरों का इन दिनों अच्छा खासा आतंक मचा है। जिसके चलते लोग दुखी हैं। लोगों ने प्रशासन से बंदरों के आतंक ...
बुढ़ाना ,.. कस्बे में आवारा असंख्य बंदरों का इन दिनों अच्छा खासा आतंक मचा है। जिसके चलते लोग दुखी हैं। लोगों ने प्रशासन से बंदरों के आतंक से छुटकारा दिलाए की मांग की है।
बताया जाता है कि यहां बंदरों का आतंक निरंतर बढ़ने से लोग दुखी हैं। प्रशासन से लोग बार बार उत्पाती बंदरों से छुटकारा दिलाने की मांग करते रहे हैं लेकिन कुछ भी समाधान नहीं हो रहा है। कस्बे में बंदरों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। जिससे बड़ी संख्या में 'लोग अपने घरों की छतों पर जाने को मजबूर हैं। बंदरों से बचने के लिए
लोग तरह-तरह की कोशिशें कर रहे हैं लेकिन इसके बावजूद भी बंदर हर रोज बच्चों, बुजुर्गों, राहगीरों व महिलाओं को काट रहे हैं।
लोगों का कहना है कि संबंधित विभाग को चाहिए कि वो बंदरों को पकड़वाकर इनके आतंक से लोगों को छुटकारा दिलाए। बंदरों की बढ़ रही संख्या के चलते गलियों में भी अब बच्चों का निकलना तक मुश्किल हो गया है। बंदरों की टोलियां घरों में घुसकर घर में रखा सामान उठाकर ले जाती हैं। बंदरों के डर से गलियों व छतों पर बच्चे नहीं खेलते हैं। महिलाएं भी छतों पर कपड़े सुखाने के बाद उनकी रखवाली करती हैं क्योंकि बंदर छतोंप र सूखने वाले कीमती कपड़े तक ले जाते हैं या फिर वहीं फाड़ डालते हैं।
बंदरों के आतंक का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सरकारी अस्पताल में हर रोज दर्जनों लोग बंदरों के काटने के कारण रैबीज इंजेक्शन की तलाश में पहुंचते हैं। कई दफा तो अस्पताल में टीका तक नहीं मिलता जिससे परेशानी और भी ज्यादा बढ़ जाती है। इन पीडितो में आसपास के गांवों के ग्रामीण भी पहुंचते हैं। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि इन बंदरों का आतंक इतना है कि गली से राहगीर अकेले नहीं जा सकते। गलियों की दीवारों पर बंदर टोलियों के साथ बैठे
रहते हैं। लोगों ने मांग की है कि जल्द से जल्द बंदरों के आतंक से छुटकारा दिलाया जाए ताकि लोंगों को राहत मिल सके। ज्यादा आतंक मौहल्ला नई बस्ती व मिर्दगान में है। कुछ दरों ने तो कुछ घरों को चिंहित किया हुआ है। जो रात में वहीं आराम करते हैं और सुबह होते ही इधर उधर चले जाते हैं। छोटी मोटी दीवारें हिला हिलाकर ये गिरा देते हैं। इस और कोई भी ध्यान नहीं दे रहा है। जनप्रतिनिधियों को तो इस समस्या के निस्तारण से कोई मतलब है ही नहीं। लोगों का कहना है कि आखिर बंदरों का आतंक कब खत्म होगा। उन्होंने इस संबंध में एसडीएम से शीघ्र ही मिलने की बात कही है।
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